मोहम्मद नावेद
यह कहानी है मोहम्मद नावेद की जिसके माता पिता एवं समाज ने उसकी क्षमता को नही पहचाना और उसे पागल करार दे दिया। इस बच्चें की क्षमता को पहचान कर उसे शिक्षा के साथ ही उसकी अन्य प्रतिभाओं को उभरने का अवसर दिया सर्व शिक्षा अभियान के कार्यकर्ता ने।
हम यह जानते है की निःशक्तता अभिशाप नही है हम यानि की समाज इसे जिस रूप में स्वीकार करेगा वही रूप होगा। प्रियंका नगर, झुग्गीबस्ती कोलार रोड़, भोपाल में एक बालक दुकान में बैठा मिला। मैं दुकान में चाय पीने गया हुआ था चाय पीते-पीते मेंने बालक की ओर देखा जो जमीन पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था ओैर बार-बार लिखता फिर मिटाता और फिर लिखता, यही प्रक्रिया बार-बार दोहराता। मेरा कोतूहल बढ़ा, मुझे लगा की बच्चा कुछ लिखने की कोशिश कर रहा है| मैं उसके पास गया तो वो हँसने लगा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, लिख लिया, लिख लिया फिर उसने मेरी तरफ देखकर कहा, “मुझे स्कूल जाना है”| इतना सब होने के बाद भी मुझे यह पता नहीं चला की यह बालक निःशक्त है पर जब मैंने उससे बात करने की कोशिश की उसके व्यवहार और उसकी एक्टीविटी से में समझ गया ओर पास बैठे कुछ लोगों से पूछा तो उन लोगो ने बोला की यह बच्चा तो पागल है ऐसे ही घूमता रहता है मैंने उनसे कहा कि आप इस बच्चे का घर बता सकते हैं उन्होंने पास की झुग्गी तरफ इशारा किया कि यही उसका घर है मै तुरंत बच्चे को साथ लेकर उसके घर गया उसके माता पिता मुझे देखकर चौक गये कि क्या हो गया कहीं हमारे बच्चे नें कुछ किया तो नहीं| पर मैंने अपना परिचय बताते हुए उनसे बच्चे के बारे में बताने को कहा जब उन्हें लगा कि सरकार की तरफ से आयें हैं हमें कुछ लाभ दिलायेंगे तो वो तुरंत बताने को तैयार हो गये ओर फिर उन्होंने बच्चे का नाम मोहम्मद नावेद बताया ओर कहा की, “हमारा बच्चा पागल है इसलिए किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा क्योंकि यह बच्चों को मारता है ओर कुछ ना कुछ हरकत करता रहता है।“ फिर मैने बच्चे का रिकार्ड मंगवाया जिसमें उसमें उसके विकलांगता प्रमाण पत्र को देखा उन्हें समझाया कि यह बालक पागल नहीं है बच्चे का मानसिक विकास कम हुआ है ओैर यह बच्चा पढ़ सकता है अभिभावक हँसने लगे साहब आप हमारा मजाक उड़ा रहें हैं, पर मैंने उनसे कहा कि ऐसा नहीं है बच्चा पढ़ सकता है केवल बच्चे को ध्यान देने की आवश्यकता है। मेरे बहुत जोर देने पर वह पढाने हेतु तैयार हो गये लेकिन मैंने जब उन्हें बताया कि बच्चे को छात्रावास में रखेंगे तब वह मना करने लगे पर मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि 15 दिन में यदि आप अपने बच्चें में बदलाव नहीं देखेंगे तो हम आप के बालक को वापस कर देंगे। वह इस विश्वास पर बच्चे को छोड़ने हेतु तैयार हो गये और दूसरे दिन बच्चे को छात्रावास में छोड़ गये अब परीक्षा की घड़ी मेरी थी क्योंकि मैने उनसे 15 दिन का समय लिया था। मैंने भी ठान लिया था कि मै बच्चे में बदलाव लाऊंगा। फिर मैंने अपने छात्रावास में मानसिक विकलांगता से प्रशिक्षित शिक्षिका श्रीमति भावना कटियार से बच्चे के बारे में चर्चा की| उन्होंने बालक के स्वभाव को जाना और अगले दिन मैडम ने बच्चे के संबंध में बताया कि बच्चा होनहार है और वह दो दिन में बहुत कुछ सीख गया है और सीखने की कोशिश भी कर रहा है| अब हमें आशा की किरण दिखाई देने लगी कि हमारी मेहनत सफल हो गई यह मेरा विश्वास था| 15 दिन तक सही ट्रीट करने के बाद बच्चे में इतना बदलाव देखकर मैं चकित रह गया, बच्चा क,ख,ग लिखना सीख गया, ए,बी,सी,डी लिखना सीख गया मैं अचंभित था| उसके घर वालों को फोन किया और बताया कि आप अपने बच्चे से आकर मिल लें। वह आये और बच्चे की प्रतिभा देख वह खुद आश्चर्यचकित रह गये एक दिन मोबाइल में गाना चल रहा था तो मैंने गौर किया कि बच्चा डाँस करने की कोशिश कर रहा था तो मैंने उसके पास जाकर तेज आवाज में गाना बजाया तो मैं उसका डाँस देखकर दंग रह गया अब मैंने इस संबंध में मेडम से चर्चा की विश्व विकलांग दिवस पर राजधानी मे प्रोग्राम होता है क्यों न बच्चों की प्रतिभा को आगे लाया जाये और दोनों विशेष शिक्षक श्रीमति भावना कटियार और श्रीमति रीना यादव ने सभी बच्चों के साथ ही नवेद को विशेष नृत्य प्रशिक्षण दिया, अब हमारी ओैर हमारे शिक्षकों की परीक्षा की घड़ी थी| 03 दिसम्बर के प्रोग्राम में नवेद और उसके दोस्तों को भाग दिलवाया गया सभी नें अपना-अपना प्रोग्राम दिखाया अब बारी नवेद की थी, वो स्टेज पर गया जैसे ही गाना चालू हुआ उसने अपनें डाँस का प्रदर्शन दिखाया, वहाँ उपस्थित सभी की तालियों की आवाज से बच्चा इतना उत्साहित हुआ कि हम अंदाजा नही लगा सकते कि उसे कितनी खुशी मिली होगी। दि. 01/12/2016 बी.आर.सी. में हुए प्रोग्राम में प्रथम पुरुस्कार एकल नृत्य में प्राप्त किया और 03 दिसम्बर को भी वही डाँस किया जिसमें उसने और अधिक अच्छा प्रर्दशन कर दिखाया क्योंकि पुरुस्कार पाने के कारण उसमें उत्साह था। 03 दिसम्बर को भी एकल नृत्य में प्रथम पुरूष्कार प्राप्त कर सभी का दिल जीत लिया| आज नवेद, छात्रावास में पढ़ रहा है और उसकी प्रतिभा पहले से ओर ज्यादा है अब वह पढ़ना सीख रहा है, पड़ने के साथ एक चीज और वो सीख रहा है, जो है बढना|
नवेद की कहानी सुने तो लगता है की, नवेद हमें सिखाता है की कभी भी हार नहीं माननी चाहिए, साथ ही यह भी की सारे समाज, परिवार एवं अभिभावकों को समझना चाहिये की, निःशक्तता अभिशाप नहीं है|